हाल ही में आप ने एक खबर पढ़ी होगी,
” उत्तरी सेंटिनल द्वीप के आदिवासियों द्वारा एक अमेरिकन इसाई मिशनरी कार्यकर्ता की हत्या “ – (लिंक)
लेकिन अचंबा तो तब होता है जब यह पता चले की इस हत्या के लिए उन आदिवासियों को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते. इस के लिए मारा गया व्यक्ति और उसे वहा पहुचाने वाले लोग जिम्मेदार है. उन आदिवासियों को दुनिया के बारे में कुछ पता नहीं उन्हें आत्मरक्षण का यही तरिका आता है. जिसे भी वह खतरेकी तरह देखते है उसे मार देते है .
वहा अगर कोई भी कदम रखने की कोशिश करता है तो आदिवासी लोग तीरो से उनका स्वागत करते है.
उत्तरी सेंटिनल द्वीप कहाँ है?
उत्तरी सेंटिनल द्वीप अंडमान से पश्चिम-दक्षिण दिशा में महज ५० किमी दुरी पर स्थित है (गूगल मैप पर देखे ). उत्तरी सेंटिनल द्वीप जंगलो से भरा हुआ है. यहाँ के मूल रहवासी जनजातीय उत्तरी सेंटिनल द्वीप में ५५ -६० हजार वर्षों से जीवन बसर कर रहे है . इस तरह के अति दुर्लभ और प्राचीन आदिवासी समुदाय के मुट्ठी भर बचे रह गए लोगों की रक्षा करने के लिए दुनिया भर से गुहार की जा रही है. भारत सरकार से अपील की जा रही है कि वह इस द्वीप को पहले की तरह प्रतिबंधित क्षेत्र बनाये रखे तथा पर्यटन के नाम पर इन पूर्व पाषाणकालीन मानवों का जीवन खतरे में नहीं डालें.

सेंटिनल जनजाति
एक अनुमान के अनुसार द्वीप पर आदिवासियों की संख्या ४० से सौ-दो सौ के बीच है. ५५ हजार वर्षों से जीवित बचा रहा यह समुदाय कितने दिनों तक धरती पर रह पायेगा, यह नहीं कहा जा सकता. आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता ने कहा कि उत्तरी सेंटिनल लोगों के व्यवहार से यह सर्वज्ञात है कि वे अपने एकांत परिवेश में रहना चाहते हैं. उनकी इस भावना का सम्मान किया जाना चाहिए।
अंडमान द्वीप में कुछ सदी पहले तक हजारों प्राचीन आदिवासी रहते थे. अंग्रेजों के काल में अंडमान पर कब्जे के बाद हजारों आदिवासियों का जीवन नाश हुआ. अपने इन्हीं अनुभवों के कारण उत्तरी सेंटिनल के लोग बाहरी लोगों से आशंकित रहते हैं. और उनकी आशंका बिलकुल जायज है. अंतरराष्ट्रीय संस्था ने आग्रह किया है कि उत्तरी सेंटिनल आदिवासियों के इलाके को सुरक्षित बनाये रखा जाना चाहिए. ये लोग अस्तित्व रक्षा के लिहाज से पृथ्वी पर सबसे अधिक खतरे में हैं.
दुनिया के अन्य देशों का अनुभव बताता है कि बाहरी लोग आदिवासियों की जमीन और संसाधनों पर कब्जा कर लेते हैं और उन्हें फ्लू और चेचक जैसी बीमारियों की ऐसी घातक सौगात देते हैं जिसका का सामना करने के लिए उनके शरीर में प्रतिरोध शक्ति नहीं होती.
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं ने भारत सरकार से अपील की है कि वह उत्तरी सेंटिनल और अंडमान की अन्य आदिवासी प्रजातियों की रक्षा के लिए कारगार कदम उठाये और उन्हें बाहरी आक्रमणों से बचाये. अमेरिकी धर्म प्रचारक की मौत से यही सबक हासिल होता है कि अस्तित्व रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे इन लोगों को बाहरी आक्रमणों से बचाया जाये.