रूह अफ़ज़ा (Rooh Afza) जो सिर्फ़ नाम नहीं खुद में एक ताज़गी है, जो लोगों के रूह तक
उतर जाती है.
रूह अफज़ा गर्मियों के मौसम की एक लोकप्रिय ड्रिंक है. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रूह अफज़ा भारत में जितना पसंद किया जाता है, उतना ही पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी. पुरानी दिल्ली में एक यूनानी दवाखाना चलाने वाले हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने सन १९०६ में इस पेय की खोज की थी.
हाफिज अब्दुल मजीद और उनके लड़कों ने गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) में हमदर्द (Wakf) लैबोरेट्रीज और कराची (पाकिस्तान) में हमदर्द (Waqf) लैबोरेट्रीज नाम से कम्पनी खोली थी. लालकुआँ, गाजियाबाद स्थित अपने संस्थान में ही पहली बार हाफिज अब्दुल मजीद ने रूह अफज़ा की खोज की थी.
१९४८ से, हमदर्द कंपनी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में उत्पाद का उत्पादन कर रही है। आमतौर पर रमजान के महीने से यह पेय जुड़ा होता है, जिसमें आमतौर पर इफ्तार के दौरान खपत होती है। इसे स्वाद शर्बत, शीतल पेय और ठंडे डेसर्ट जैसे लोकप्रिय फालूदा के रूप में वाणिज्यिक रूप से बेच दिया जाता है.
देश आज़ाद हुआ तो विभाजन की कालिख़ भी दक्षिण एशिया को भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश नाम से तीन बड़े देश दे गई. तब तक अब्दुल हमीद तो चल बसे थे, लेकिन उनके दो बेटे थे. बड़ा बेटा यहीं रुक गया, छोटा पाकिस्तान चला गया. ‘हमदर्द (वक़्फ़) दवाखाना’ तो यहां चल ही रहा था, छोटे भाई ने कराची के दो कमरों में भी हमदर्द शुरू कर दिया. फिर क्या, विभाजन के दर्द के बाद जिस चीज़ ने सीमा के दोनों ओर बसे मुसलमानों को जोड़ा, वह थी रूह अफ़ज़ा. यही कारण है कि रूह अफ़ज़ा (Rooh Afza) भारत में जितना पसंद किया जाता है, उतना ही पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी. आज आलम यह है कि यूपी के गाज़ियाबाद की ये खोज आज पूरे विश्व में जानी जाती है.

रूह अफ़ज़ा और हमदर्द को लेकर कोई पहली बार सोशल मीडिया पर सवाल खड़ा नहीं किया गया है. बल्कि इससे पहले भी ये विवाद उठाया गया था कि हमदर्द कंपनी में सिर्फ़ मुसलमान ही काम करते हैं. लेकिन सोशल मीडिया पर इस आरोप को भी पूरी तरह से मात मिली थी.